"आईसीएफएमटी मिडकॉन-2025 सम्मेलन में भाग लेते राष्ट्रीय फॉरेंसिक विशेषज्ञ और मेडिकल छात्र""आईसीएफएमटी मिडकॉन-2025 सम्मेलन में भाग लेते राष्ट्रीय फॉरेंसिक विशेषज्ञ और मेडिकल छात्र"

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अल्मोड़ा: उत्तराखंड के सोबन सिंह जीना गवर्नमेंट मेडिकल साइंसेज़ एंड रिसर्च संस्थान, अल्मोड़ा में 8-9 जून को इंडियन कांग्रेस ऑफ फॉरेंसिक मेडिसिन एंड टॉक्सिकोलॉजी (ICFMT) के मिड-टर्म सम्मेलन ‘मिडकॉन-2025’ का आयोजन सफलतापूर्वक संपन्न हुआ। इस राष्ट्रीय स्तर के शैक्षणिक आयोजन में देशभर से आए विशेषज्ञों, शिक्षकों और विद्यार्थियों की भागीदारी ने इसे एक उल्लेखनीय मंच बना दिया।

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सम्मेलन की शुरुआत और उद्देश्य

द्वितीय दिवस का उद्घाटन एसएसजे विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. सतपाल सिंह बिष्ट और संस्थान के प्राचार्य एवं डीन डॉ. सी.पी. भैसौड़ा द्वारा किया गया। प्रो. बिष्ट ने अपने संबोधन में कहा कि न्याय प्रणाली में फॉरेंसिक मेडिसिन की भूमिका तेजी से बढ़ रही है, और ऐसे मंच छात्र-छात्राओं के करियर निर्माण और व्यावहारिक ज्ञान के लिए अत्यंत उपयोगी हैं।

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प्रतिनिधित्व और शैक्षणिक गतिविधियाँ

सम्मेलन में देश के 157 से अधिक प्रतिभागियों ने भाग लिया।75 मौखिक प्रस्तुतियाँ, 15 पोस्टर प्रदर्शन और 22 राष्ट्रीय विशेषज्ञों के व्याख्यान आयोजित हुए। विज्ञान सत्रों, इंटरएक्टिव चर्चाओं और कार्यशालाओं में बड़ी संख्या में छात्रों और शिक्षकों ने सक्रिय सहभागिता दिखाई।

महत्वपूर्ण सत्र और विषयवस्तु

1. वैश्विक मृत्यु जांच प्रणाली– डॉ. नीरज कुमार ने भारत की मौजूदा मृत्यु जांच प्रणाली को वैश्विक परिप्रेक्ष्य में रखते हुए सुधारों की आवश्यकता को रेखांकित किया।

2. PCPNDT अधिनियम के कानूनी आयाम– डॉ. ईश्वर तायल ने भ्रूण लिंग चयन पर प्रतिबंध लगाने वाले इस महत्वपूर्ण अधिनियम की विधिक गहराइयों को उजागर किया।

3. एनेस्थीसिया के दौरान मृत्यु और कानूनी पहलू– डॉ. उर्मिला पलड़िया ने चिकित्सा लापरवाही के दृष्टिकोण से इस संवेदनशील विषय पर महत्वपूर्ण बिंदु साझा किए।

4. जानबूझकर आत्म-क्षति के कानूनी और नैदानिक पहलू– डॉ. वीना तेजन ने आत्मघाती प्रवृत्तियों और उनसे जुड़े कानूनी उत्तरदायित्वों पर प्रकाश डाला।

5. आयु निर्धारण की विधिक और वैज्ञानिक विधियाँ– डॉ. दलबीर सिंह और डॉ. प्रीत इंदर सिंह ने अपराधियों और पीड़ितों की पहचान में वैज्ञानिक तरीकों की उपयोगिता पर व्याख्यान दिया।

6. सरोगेसी और विधिक चुनौतियाँ– डॉ. अशोक चनाना, डॉ. शैलेन्द्र सिंह और डॉ. डीसी पुनेरा ने आधुनिक प्रजनन तकनीकों, जैसे सरोगेसी, से जुड़ी कानूनी और नैतिक समस्याओं पर गहराई से चर्चा की।

7. डिजिटल मेडिकल लीगल इकोसिस्टम में बदलाव– एनआईसी हरियाणा के साइंटिस्ट-एफ राहुल जैन ने तकनीक आधारित नई कानूनी संरचना, डिजिटल रिकॉर्ड्स और राष्ट्रीय डाटाबेस के प्रयोग पर अपनी प्रस्तुति दी।

सम्मेलन का महत्व और भविष्य की दिशा

आयोजन समिति ने समापन सत्र में वक्ताओं, प्रतिभागियों और स्वयंसेवकों का आभार व्यक्त किया। वक्ताओं ने कहा कि यह सम्मेलन केवल एक शैक्षणिक आयोजन न होकर, फॉरेंसिक विज्ञान को न्याय प्रणाली की बदलती ज़रूरतों के अनुरूप ढालने की दिशा में एक अहम पहल है। तकनीक, विधिक ज्ञान और नैतिकता के समन्वय से यह क्षेत्र भविष्य में और सशक्त हो सकेगा।

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By Aman

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