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देहरादून न्यूज़
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री ने एक बड़ा कदम उठाते हुए घोषणा की है कि राज्य में 2025 से समान नागरिक संहिता (UCC) लागू की जाएगी। यह फैसला राज्य सरकार की प्रतिबद्धता को दर्शाता है, जो समाज में समानता और एकरूपता स्थापित करने की दिशा में लिया गया है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि समान नागरिक संहिता राज्य के नागरिकों को एक समान कानून के तहत लाने का प्रयास है, जिससे धर्म, जाति, और समुदाय के आधार पर भेदभाव समाप्त किया जा सके। उन्होंने जोर देकर कहा कि यह कदम महिलाओं के अधिकारों को मजबूत करने, लैंगिक समानता सुनिश्चित करने और समाज में भाईचारे को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण साबित होगा।
क्या है समान नागरिक संहिता?

समान नागरिक संहिता का अर्थ है कि देश या राज्य के सभी नागरिकों पर एक समान कानून लागू हो, चाहे उनका धर्म, जाति, या समुदाय कुछ भी हो। इसमें विवाह, तलाक, संपत्ति वितरण, गोद लेने और उत्तराधिकार जैसे मामलों को एक ही कानून के दायरे में लाने का प्रावधान है।
क्यों महत्वपूर्ण है यह कदम?
मुख्यमंत्री ने इस कदम को ऐतिहासिक बताते हुए कहा, “उत्तराखंड जैसे प्रगतिशील राज्य में समान नागरिक संहिता लागू करना समाज के लिए एक सकारात्मक बदलाव होगा। यह हमारे संविधान के अनुच्छेद 44 के तहत निर्देशित नीति के अनुरूप है।”
समिति की सिफारिशें लागू होंगी
सरकार ने पहले ही एक विशेषज्ञ समिति का गठन किया था, जिसमें विभिन्न कानून विशेषज्ञ, सामाजिक कार्यकर्ता और न्यायविद शामिल थे। समिति ने व्यापक विचार-विमर्श और नागरिकों के सुझावों के आधार पर अपनी रिपोर्ट पेश की है। मुख्यमंत्री ने आश्वासन दिया कि इस रिपोर्ट के आधार पर कानून बनाया जाएगा, जो सभी के हितों को ध्यान में रखेगा।
जनता की प्रतिक्रिया
समान नागरिक संहिता की घोषणा पर जनता में मिश्रित प्रतिक्रियाएं देखने को मिली हैं।

कई लोगों ने इसे ऐतिहासिक और समाज को जोड़ने वाला कदम बताया है, वहीं कुछ लोगों ने इस पर सवाल उठाए हैं और इसे धार्मिक स्वतंत्रता के लिए चुनौती बताया है।
राष्ट्रीय राजनीति पर प्रभाव
उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता लागू करने का फैसला राष्ट्रीय राजनीति में भी चर्चा का विषय बन सकता है। इसे देश के अन्य राज्यों के लिए एक उदाहरण के रूप में देखा जा रहा है।
अगले कदम
राज्य सरकार जल्द ही इस कानून का मसौदा तैयार करेगी और इसे 2025 तक लागू करने का लक्ष्य रखेगी। मुख्यमंत्री ने जनता से अपील की है कि वे इस पहल का समर्थन करें और समाज में शांति और समरसता बनाए रखने में सहयोग दें।
उत्तराखंड का यह कदम न केवल राज्य के विकास के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि यह देश के अन्य राज्यों को भी समानता की दिशा में आगे बढ़ने की प्रेरणा देगा।