देहरादून में मुख्यमंत्री आवास कूच के दौरान नारे लगाते हुए मनरेगा कर्मी और बैरिकेडिंग पर तैनात पुलिसकर्मी।देहरादून में मुख्यमंत्री आवास कूच के दौरान नारे लगाते हुए मनरेगा कर्मी और बैरिकेडिंग पर तैनात पुलिसकर्मी।

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देहरादून में सोमवार को उत्तराखंड के मनरेगा कर्मियों ने अपनी लंबित मांगों को लेकर मुख्यमंत्री आवास की ओर कूच किया। नियमितीकरण, वेतन वृद्धि और समायोजन की मांगों पर अड़े इन कर्मचारियों का प्रदर्शन दिलाराम चौक से शुरू होकर मुख्यमंत्री आवास के पास पहुंचा, जहां पुलिस ने उन्हें रोक लिया। इस दौरान हल्की धक्कामुक्की भी हुई, हालांकि स्थिति नियंत्रण में रही।

महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) ग्रामीण भारत में रोजगार सृजन का एक प्रमुख कार्यक्रम है, जिसके तहत लाखों लोग असंगठित क्षेत्र में कार्यरत हैं।
उत्तराखंड में भी हजारों मनरेगा कर्मचारी कई वर्षों से अपनी सेवाएं दे रहे हैं, लेकिन उन्हें स्थायी नौकरी, वेतनमान और अन्य सरकारी सुविधाओं से वंचित रखा गया है।
पिछले कई वर्षों से ये कर्मचारी समय-समय पर सरकार से अपने नियमितीकरण और वेतन सुधार की मांग कर रहे हैं, मगर अब तक उनकी कोई सुनवाई नहीं हुई है। इससे पहले भी राज्य के विभिन्न जिलों में मनरेगा कर्मी धरना-प्रदर्शन कर चुके हैं, लेकिन जब सरकार की ओर से कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया तो उन्होंने देहरादून में मुख्यमंत्री आवास कूच का निर्णय लिया।

घटना

सोमवार सुबह उत्तराखंड मनरेगा कर्मचारी संगठन के बैनर तले सैकड़ों कर्मी देहरादून के दिलाराम चौक पर एकत्र हुए। वहाँ से उन्होंने नारेबाजी करते हुए मुख्यमंत्री आवास की ओर मार्च शुरू किया।

मार्च के दौरान कर्मचारियों के हाथों में बैनर और पोस्टर थे, जिन पर लिखा था —
मनरेगा कर्मियों को अधिकार दो, नियमितीकरण हमारा हक है, श्रमिक नहीं, कर्मी हैं हम।”

जैसे ही यह भीड़ मुख्यमंत्री आवास के नजदीक पहुँची, पुलिस ने सुरक्षा के मद्देनज़र बैरिकेडिंग लगा दी।
कर्मचारियों ने आगे बढ़ने की कोशिश की, जिसके चलते पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच धक्कामुक्की की स्थिति बन गई।
हालांकि स्थिति जल्द ही नियंत्रण में आ गई और किसी गंभीर चोट की सूचना नहीं मिली।

उत्तराखंड मनरेगा कर्मचारी संगठन के प्रदेश अध्यक्ष सुंदर मणि सेमवाल ने कहा —

“हम पिछले कई वर्षों से असंगठित क्षेत्र में दिन-रात मेहनत कर रहे हैं, लेकिन न तो हमें नियमित किया जा रहा है और न ही हमारा वेतन बढ़ाया गया है। सरकार सिर्फ आश्वासन दे रही है, जबकि हमारे परिवार आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं।”

उन्होंने आगे कहा —

“अगर सरकार ने जल्द ही हमारी मांगों पर कोई ठोस निर्णय नहीं लिया, तो आंदोलन और उग्र रूप लेगा।”

मुख्यमंत्री आवास पहुंचने पर संगठन के प्रतिनिधिमंडल ने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के कोऑर्डिनेटर को ज्ञापन सौंपा।
मुख्यमंत्री के बाहर होने के कारण मुलाकात नहीं हो सकी, लेकिन दो दिनों के भीतर वार्ता कराने का आश्वासन दिया गया। सरकार की ओर से अभी तक कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है।

स्थानीय प्रभाव:

प्रदर्शन के चलते दिलाराम चौक से लेकर सचिवालय मार्ग तक यातायात कुछ समय के लिए बाधित रहा।
पुलिस को जाम की स्थिति से निपटने के लिए अतिरिक्त बल तैनात करना पड़ा।
आसपास के बाजारों और दफ्तरों में भी लोगों को थोड़ी असुविधा का सामना करना पड़ा।

स्थानीय नागरिकों ने कहा कि वे कर्मचारियों की मांगों से सहानुभूति रखते हैं, लेकिन ऐसे प्रदर्शन शहर के यातायात को बाधित करते हैं। फिर भी, ग्रामीण विकास योजनाओं में योगदान देने वाले इन कर्मियों की समस्याओं का समाधान सरकार को जल्द करना चाहिए — यह भावना आम जनता में स्पष्ट रूप से दिखी।

तुलनात्मक विश्लेषण और आँकड़े:

उत्तराखंड में वर्तमान में से अधिक मनरेगा कर्मचारी कार्यरत हैं।
इनमें से अधिकांश अस्थायी अनुबंधों पर हैं, जिन्हें स्थायी लाभ नहीं मिल रहे।

पिछले साल भी कर्मचारियों ने 10-दिवसीय धरना दिया था, जिसके बाद सरकार ने वेतनमान सुधार का आश्वासन दिया था, लेकिन उस पर अमल नहीं हुआ। देश के अन्य राज्यों — जैसे राजस्थान, बिहार और छत्तीसगढ़ — में मनरेगा कर्मियों को आंशिक रूप से नियमित किया गया है।
उत्तराखंड के कर्मचारी अब उन्हीं मानकों की मांग कर रहे हैं।

घटना का सामाजिक और राजनीतिक महत्व:

यह प्रदर्शन केवल आर्थिक मुद्दा नहीं, बल्कि ग्रामीण विकास और श्रम अधिकारों से जुड़ा बड़ा सवाल बनता जा रहा है।
विशेषज्ञों का मानना है कि यदि मनरेगा कर्मियों को नियमित कर दिया जाए, तो यह ग्रामीण रोजगार प्रणाली को और स्थायित्व देगा। राजनीतिक दृष्टि से भी यह आंदोलन महत्वपूर्ण है, क्योंकि राज्य सरकार अगले वर्ष पंचायत चुनावों की तैयारी में है और ग्रामीण मतदाता इसमें अहम भूमिका निभाते हैं।
यदि कर्मचारियों की मांगों की अनदेखी होती रही, तो इसका असर राजनीतिक समीकरणों पर भी पड़ सकता है।

मनरेगा कर्मियों का यह कूच केवल वेतन या नौकरी की मांग नहीं, बल्कि सम्मानजनक जीवन की चाह का प्रतीक है।
सरकार को चाहिए कि वह जल्द से जल्द उनकी समस्याओं का समाधान निकाले, ताकि ग्रामीण विकास के इस महत्वपूर्ण स्तंभ का मनोबल बना रहे। त्योहारों और आगामी सर्दियों के मौसम में इस तरह के आंदोलनों को रोकने के लिए संवाद ही सबसे प्रभावी रास्ता है।

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By ATHAR

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