उत्तराखण्ड के किसान मुख्यमंत्री को पत्र सौंपते हुए, कृषि समस्याओं को लेकर ज्ञापन देते किसान नेता।उत्तराखण्ड के किसान मुख्यमंत्री को पत्र सौंपते हुए, कृषि समस्याओं को लेकर ज्ञापन देते किसान नेता।

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भारतीय किसान संघ उत्तराखण्ड के ब्लॉक अध्यक्ष आलोक सिंह ने मंगलवार को प्रदेश के किसानों की समस्याओं को लेकर मुख्यमंत्री को एक विस्तृत पत्र भेजा। यह पत्र रुड़की की खंड विकास अधिकारी सुमन कुटियाल को सौंपा गया। पत्र में किसानों से जुड़ी कई गंभीर समस्याओं और उनकी अपेक्षाओं को विस्तार से रखा गया है। किसानों का कहना है कि प्रदेश में कृषि कार्य लगातार कठिन होता जा रहा है, और यदि सरकार ने ठोस कदम नहीं उठाए तो किसान वर्ग को गहरी आर्थिक और सामाजिक समस्याओं का सामना करना पड़ेगा।

पत्र में सबसे पहले निजी नलकूपों पर किसानों को निशुल्क बिजली देने और पहले से बकाया सरचार्ज माफ करने की मांग रखी गई है। किसानों का कहना है कि सिंचाई के लिए बिजली सबसे अहम साधन है। महंगी बिजली और अतिरिक्त शुल्क की वजह से कृषि लागत बढ़ती जा रही है, जिससे किसानों का मुनाफा लगातार घट रहा है। यदि सरकार नलकूपों पर बिजली निशुल्क उपलब्ध कराए तो किसानों को बड़ी राहत मिलेगी और वे खेती को बेहतर ढंग से कर पाएंगे।

इसके अलावा पत्र में अतिवृष्टि के कारण फसल और जनधन को हुई हानि का भी जिक्र किया गया है। किसानों ने मुख्यमंत्री से आग्रह किया है कि प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित किसानों को तुरंत मुआवजा और राहत राशि दी जाए। उनका कहना है कि हर साल बेमौसम बरसात और आपदाओं के कारण किसानों की फसल बर्बाद हो जाती है, लेकिन मुआवजे की प्रक्रिया धीमी होने की वजह से किसान गंभीर संकट में फंस जाते हैं।

पत्र में यह भी मांग की गई कि बुआई के समय पर किसानों को खाद और बीज की पर्याप्त उपलब्धता सुनिश्चित की जाए। किसानों का कहना है कि कई बार बीज और खाद की किल्लत के चलते उन्हें खुले बाजार से महंगे दामों पर सामग्री खरीदनी पड़ती है, जिससे उनकी लागत और बढ़ जाती है। सरकार यदि समय रहते यह व्यवस्था करे तो किसान अपनी खेती सही समय पर कर सकेंगे और उत्पादन भी बढ़ेगा।

एक अन्य अहम मुद्दा कृषि यंत्रों पर सब्सिडी का है। किसानों ने कहा है कि सब्सिडी का लाभ समान रूप से सभी किसानों तक पहुंचे, ताकि छोटे और सीमांत किसान भी आधुनिक कृषि उपकरणों का इस्तेमाल कर सकें। वर्तमान व्यवस्था में कई बार सब्सिडी का फायदा बड़े किसानों या प्रभावशाली वर्ग तक ही सीमित रह जाता है।

भूमि संबंधित मामलों को लेकर भी पत्र में चिंता जताई गई है। किसानों का आरोप है कि चकबन्दी विभाग द्वारा भूमि प्रमाण पत्र और खतौनी की नकल पर मनमाना शुल्क वसूला जा रहा है। किसानों का कहना है कि यह उनकी आर्थिक स्थिति पर बोझ डालता है और प्रशासन को इस पर तुरंत रोक लगानी चाहिए।

पत्र में गौ आधारित जैविक खेती को बढ़ावा देने की भी मांग की गई है। किसानों का कहना है कि रासायनिक खाद और कीटनाशकों के अत्यधिक उपयोग से भूमि की उर्वरक क्षमता कम हो रही है। यदि सरकार किसानों को जैविक खेती की दिशा में प्रोत्साहन और आर्थिक सहयोग दे तो खेती अधिक टिकाऊ और लाभदायक हो सकती है।

किसानों ने यह भी आग्रह किया कि सरकार कृषि क्षेत्र में योजनाओं की पारदर्शिता और क्रियान्वयन पर विशेष ध्यान दे। कई बार योजनाओं की जानकारी किसानों तक नहीं पहुंच पाती, जिससे वे उनका लाभ नहीं उठा पाते। पत्र में यह सुझाव भी दिया गया है कि किसानों के लिए समय-समय पर ग्राम स्तर पर शिविर लगाकर योजनाओं की जानकारी दी जाए।

ज्ञापन सौंपने वालों में आलोक सिंह के साथ कुशलपाल सिंह, यशपाल सिंह, राजसिंह वर्मा, जगपाल सिंह, तेजवीर सिंह, अभिषेक कुमार, ऋषिपाल सिंह आदि किसान शामिल थे। सभी का कहना था कि यदि सरकार उनकी समस्याओं का समय रहते समाधान नहीं करती तो आंदोलन का रास्ता अपनाना पड़ सकता है।

इस पूरे मामले का राजनीतिक और सामाजिक महत्व भी है। उत्तराखण्ड जैसे पर्वतीय और कृषि-प्रधान राज्य में किसान आज भी मुख्य आधार हैं। खेती की बदहाल स्थिति न केवल किसानों के जीवन स्तर को प्रभावित करती है बल्कि प्रदेश की अर्थव्यवस्था पर भी सीधा असर डालती है। इसलिए यह आवश्यक है कि सरकार किसानों की मांगों पर संवेदनशील रुख अपनाए।

यह खबर किसानों की स्थिति को उजागर करती है और यह दिखाती है कि आज भी ग्रामीण और कृषि समाज के सामने कई मूलभूत चुनौतियाँ बनी हुई हैं। बिजली, पानी, बीज, खाद, और मुआवजा जैसी बुनियादी जरूरतें यदि समय पर पूरी हों तो किसान अपने परिश्रम से प्रदेश और देश की अर्थव्यवस्था को नई ऊंचाइयों तक ले जा सकते हैं।

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By ATHAR

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