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रुद्रप्रयाग जिले की ग्राम पंचायत दरमोला में देव निशानों और पांडव पश्वाओं के गंगा स्नान के साथ पारंपरिक पांडव नृत्य की शुरुआत हुई। संगम तट पर वैदिक मंत्रोच्चारण, हवन और आरती के बीच भक्तों ने देवताओं के स्वागत में जयकारे लगाए, जिससे पूरा क्षेत्र आस्था और भक्ति से सराबोर हो गया।
सदियों पुरानी परंपरा का पुनर्जागरण
उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में पांडव नृत्य न केवल एक सांस्कृतिक आयोजन है, बल्कि यह आस्था, लोककला और परंपरा का अद्भुत संगम भी है। हर वर्ष हरिबोधनी एकादशी के अवसर पर भगवान विष्णु की जागृति के साथ यह अनुष्ठान शुरू होता है। धार्मिक मान्यता है कि इसी दिन भगवान नारायण पांच महीने की योगनिद्रा से जागते हैं और तुलसी विवाह के साथ देवउठनी एकादशी का पर्व मनाया जाता है। इसी के साथ देव निशान पर्वतीय गांवों में भ्रमण कर पांडव नृत्य का शुभारंभ करते हैं।
गंगा स्नान से हुई धार्मिक यात्रा की शुरुआत
शनिवार को दरमोला, तरवाड़ी, स्वीली-सेम गांव के ग्रामीण पारंपरिक वाद्य यंत्रों — ढोल-दमाऊं और रणभेरी — की ध्वनि के साथ अलकनंदा-मंदाकिनी संगम पर पहुंचे। देव निशानों और पांडव पश्वाओं ने संगम में गंगा स्नान किया।
इसके बाद पूजा-अर्चना और हवन के साथ देवताओं का तिलक किया गया। पुजारी कीर्तिराम डिमरी और आचार्य शंशाक शेखर ने वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ भगवान बद्रीविशाल, लक्ष्मीनारायण, तुंगनाथ, नागराजा, हीत देवता, चामुंडा देवी, भैरवनाथ सहित अन्य देवी-देवताओं का शुद्धिकरण और श्रृंगार किया।
देव निशानों का दरमोला आगमन और स्थापना
स्नान और पूजा के बाद देव निशान दरमोला गांव पहुंचे, जहां ग्रामीणों ने पुष्पवर्षा कर स्वागत किया। पूजा के उपरांत उन्हें पांडव चौक में विधिवत स्थापित किया गया। इस दौरान भक्तों के जयकारों और घंटा-घड़ियालों की ध्वनि से पूरा क्षेत्र गुंजायमान हो उठा। ग्रामीणों का कहना है कि “यह आयोजन देव परंपरा का प्रतीक है, जो लोक संस्कृति को नई पीढ़ी तक पहुंचाने का माध्यम है।”
पुजारियों और श्रद्धालुओं ने निभाई परंपरा
रात्रि में संगम स्थल पर भक्तों ने जागरण किया और चार पहर की पूजा-अर्चना हुई। पुजारियों और ब्राह्मणों ने हवन कर देवताओं को प्रसन्न करने के लिए वैदिक विधि से अनुष्ठान संपन्न किया। स्थानीय लोगों ने भंडारे का आयोजन भी किया, जिसमें सैकड़ों श्रद्धालुओं ने प्रसाद ग्रहण किया।
ग्रामीणों की आस्था और सामाजिक एकता का प्रतीक
हर वर्ष पांडव नृत्य का आयोजन दरमोला और राजस्व गांव तरवाड़ी में बारी-बारी से किया जाता है। इस वर्ष दरमोला में देव निशानों की स्थापना के साथ पांडव नृत्य शुरू हुआ है। आयोजन में गिरीश डिमरी, एनएस कप्रवान, राकेश पंवार, लक्ष्मी प्रसाद डिमरी, जयपाल सिंह, संतोष रावत और बड़ी संख्या में स्थानीय जनता शामिल रही। ग्रामीणों ने बताया कि यह आयोजन न केवल धार्मिक उत्सव है, बल्कि यह आपसी सौहार्द और एकता का भी संदेश देता है।
स्थानीय प्रभाव और पर्यटन संभावनाएँ
इस आयोजन से स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी बल मिलता है। ग्रामीण हस्तशिल्प, प्रसाद सामग्री और पारंपरिक वस्त्रों की बिक्री बढ़ जाती है। कई श्रद्धालु दूर-दराज़ गांवों और शहरों से यहां पहुंचते हैं, जिससे धार्मिक पर्यटन को प्रोत्साहन मिलता है। क्षेत्र के व्यापारी बताते हैं कि “पांडव नृत्य जैसे आयोजन रुद्रप्रयाग की पहचान बन चुके हैं और हर वर्ष इनसे क्षेत्र में चहल-पहल बढ़ जाती है।”
परंपरा और आधुनिकता का संगम
पांडव नृत्य केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि लोकसंस्कृति की जीवंत मिसाल है। युवा पीढ़ी भी इस परंपरा से जुड़ रही है, जो सांस्कृतिक धरोहर के संरक्षण की दिशा में सकारात्मक संकेत है। स्थानीय प्रशासन भी ऐसे आयोजनों को बढ़ावा देने के लिए सांस्कृतिक योजनाओं के तहत सहायता प्रदान कर सकता है।देव निशानों के गंगा स्नान और पांडव नृत्य के आरंभ के साथ दरमोला गांव भक्ति और परंपरा से सराबोर हो गया है। सदियों पुरानी यह विरासत आज भी लोगों को जोड़ने का कार्य कर रही है। जरूरत है कि इस सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करते हुए आने वाली पीढ़ियों तक इसकी गौरवशाली परंपरा को पहुँचाया जाए।
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