भीमगोड़ा क्षेत्र में भूस्खलन स्थल का निरीक्षण करती वैज्ञानिक टीम और प्रशासनिक अधिकारी।भीमगोड़ा क्षेत्र में भूस्खलन स्थल का निरीक्षण करती वैज्ञानिक टीम और प्रशासनिक अधिकारी।

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हरिद्वार, 18 सितंबर 2025।
गंगा तट के समीप स्थित भीमगोड़ा क्षेत्र इन दिनों लगातार हो रहे भूस्खलन की वजह से चर्चा में है। पहाड़ से गिरते मलबे और चट्टानों के कारण स्थानीय लोगों, पर्यटकों और रेलवे ट्रैक के लिए खतरा बना हुआ है। इसी समस्या के समाधान के लिए जिलाधिकारी मयूर दीक्षित के निर्देशन में उत्तराखंड भूस्खलन न्यूनीकरण एवं प्रबंधन केंद्र (UKLMRC) की वैज्ञानिक टीम ने गुरुवार को क्षेत्र का स्थलीय निरीक्षण किया। निरीक्षण के दौरान वैज्ञानिकों ने स्पष्ट किया कि इस क्षेत्र की भूगर्भीय स्थिति बेहद जटिल और संवेदनशील है। यहां मौजूद रॉक-मड स्टोन की चट्टानें अत्यधिक कमजोर हैं, जिसके कारण हल्की बारिश और नमी से भी पहाड़ी खिसकने लगती है।

रेलवे ट्रैक पर मंडरा रहा खतरा

भूस्खलन का असर सिर्फ स्थानीय लोगों तक सीमित नहीं है। निरीक्षण में शामिल भूवैज्ञानिकों ने यह भी बताया कि भीमगोड़ा पहाड़ी से गिरने वाला मलबा रेलवे ट्रैक तक पहुंच सकता है। इससे रेल यातायात प्रभावित होने की संभावना बनी रहती है। रेलवे विभाग के अधिकारियों को भी चेताया गया कि जब तक स्थायी प्रबंधन की योजना लागू नहीं होती, तब तक एहतियाती कदम उठाना बेहद जरूरी है।

कमजोर चट्टानों से बढ़ रहा खतरा

निरीक्षण कर रही टीम की सीनियर भूवैज्ञानिक डॉ. रुचिका टेंडन ने बताया कि भीमगोड़ा क्षेत्र का यह पहाड़ भूगर्भीय दृष्टि से बड़ी चुनौती पेश कर रहा है। मड स्टोन और कमजोर चट्टानों के कारण यहां बार-बार भूस्खलन की घटनाएं हो रही हैं। उन्होंने कहा कि इस क्षेत्र की चट्टानों का वैज्ञानिक परीक्षण कराया जाएगा। परीक्षण रिपोर्ट आने के बाद ही स्थायी समाधान की दिशा में ठोस योजना बनाई जा सकेगी। इस रिपोर्ट के आधार पर प्रशासन को सुझाव दिए जाएंगे और ट्रीटमेंट प्लान तैयार किया जाएगा।

आपदा प्रबंधन की दृष्टि से भी अहम

हरिद्वार का भीमगोड़ा क्षेत्र धार्मिक दृष्टि से ही नहीं बल्कि पर्यटक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। यहां प्रतिदिन हजारों श्रद्धालु गंगा स्नान के लिए पहुंचते हैं। ऐसे में अगर भूस्खलन की घटनाएं बढ़ती हैं तो जनहानि और संपत्ति का नुकसान भी बढ़ सकता है। जिला प्रशासन ने आपदा प्रबंधन विभाग को भी निर्देश दिए हैं कि जब तक वैज्ञानिक रिपोर्ट नहीं आती, तब तक अस्थायी उपाय किए जाएं। इनमें ढलानों को जालियों से ढकना, पानी की निकासी के लिए नालियां बनाना और संवेदनशील स्थानों पर चेतावनी बोर्ड लगाना शामिल है।

स्थानीय लोगों की चिंता

स्थानीय लोगों का कहना है कि पिछले कुछ वर्षों से भूस्खलन की घटनाएं बढ़ रही हैं। पहाड़ी से गिरने वाले पत्थरों और मलबे से राहगीरों और घरों को खतरा बना हुआ है। कई बार लोग बाल-बाल बच चुके हैं। ग्रामवासियों ने प्रशासन से मांग की है कि जल्द से जल्द स्थायी प्रबंधन योजना बनाई जाए, ताकि उनके जीवन और संपत्ति पर मंडरा रहा खतरा खत्म हो सके।

भीमगोड़ा क्षेत्र का भूस्खलन केवल एक स्थानीय समस्या नहीं है, बल्कि यह हरिद्वार जैसे धार्मिक और पर्यटक नगरी के लिए गंभीर चुनौती है। जिलाधिकारी मयूर दीक्षित के नेतृत्व में हो रहा यह वैज्ञानिक निरीक्षण इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। अब सबकी निगाहें भूवैज्ञानिक टीम की रिपोर्ट पर टिकी हैं। यह रिपोर्ट तय करेगी कि किस तरह का ट्रीटमेंट प्लान लागू होगा और किस तरह से पहाड़ी की कमजोर चट्टानों को स्थिर किया जाएगा। स्थानीय लोग उम्मीद कर रहे हैं कि प्रशासन और वैज्ञानिक मिलकर इस समस्या का स्थायी समाधान निकालेंगे।

जिलाधिकारी मयूर दीक्षित के निर्देश

हरिद्वार के जिलाधिकारी मयूर दीक्षित ने कहा कि भीमगोड़ा क्षेत्र में हो रहा भूस्खलन गंभीर समस्या है। वैज्ञानिक टीम की रिपोर्ट के आधार पर जल्द ही ठोस कदम उठाए जाएंगे। उन्होंने संबंधित विभागों को चेताया कि किसी भी प्रकार की लापरवाही से प्रशासन सख्ती से निपटेगा। डीएम ने कहा कि इस मामले में प्राथमिकता लोगों की सुरक्षा और रेलवे संचालन की निरंतरता है। इसलिए सभी विभागों को मिलकर समन्वय करना होगा।

निरीक्षण में शामिल अधिकारी और वैज्ञानिक

स्थलीय निरीक्षण के दौरान कई विभागों के अधिकारी और विशेषज्ञ मौजूद रहे। इनमें –

  • भूवैज्ञानिक डॉ. रुचिका टेंडन और डॉ. रघुबीर
  • उप निदेशक राजाजी पार्क अजेय नेगी
  • जिला आपदा प्रबंधन अधिकारी मीरा रावत
  • अधिशासी अभियंता लोनिवि दीपक कुमार
  • सहायक अभियंता लोनिवि गणेश जोशी
  • वन विभाग के अधिकारी सुनील कुमार और रेंजर वीरेंद्र तिवारी
  • चौकी इंचार्ज हरकी पैड़ी संजीत कंडारी
  • इन सभी अधिकारियों ने मिलकर क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति, मलबे के फैलाव और सुरक्षा उपायों का बारीकी से अध्ययन किया।

संयुक्त बैठक की तैयारी

डॉ. रुचिका टेंडन ने यह भी कहा कि रिपोर्ट तैयार होने के बाद वन विभाग, रेलवे, लोक निर्माण विभाग और आपदा प्रबंधन अधिकारियों के साथ संयुक्त बैठक आयोजित की जाएगी। इस बैठक में भूस्खलन नियंत्रण की तकनीक और प्रबंधन योजना पर चर्चा होगी। उन्होंने जोर देकर कहा कि यह समस्या केवल एक विभाग की जिम्मेदारी नहीं है। सभी विभागों को मिलकर समन्वय बनाना होगा तभी इस समस्या का स्थायी समाधान संभव है।

भूवैज्ञानिकों का मानना है कि इस क्षेत्र की कमजोर चट्टानों को तकनीकी उपायों से स्थिर किया जा सकता है। इसमें रॉक बोल्टिंग, वायर मेशिंग, शॉट क्रीटिंग और पानी की निकासी के लिए ड्रेनेज सिस्टम जैसे उपाय शामिल हैं। इसके अलावा, ढलानों पर हरियाली बढ़ाने और वृक्षारोपण को भी दीर्घकालिक समाधान माना जा रहा है। वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर इन उपायों को जल्द लागू किया गया तो भूस्खलन की घटनाओं पर काफी हद तक नियंत्रण पाया जा सकेगा।

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By ATHAR

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