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कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत हमेशा से अपनी राजनीतिक और सामाजिक सक्रियता के लिए जाने जाते हैं। लेकिन इस बार उनका एक ऐसा कदम सामने आया जिसने न सिर्फ उत्तराखंड की राजनीति में बल्कि पूरे देश के सामाजिक ताने-बाने में एक नई मिसाल पेश की। हरीश रावत ने पिरान कलियर शरीफ दरगाह के उर्स के मौके पर अपनी आस्था और मोहब्बत का इज़हार करते हुए एक विशेष चादर भेजी। यह चादर उनके प्रतिनिधि के रूप में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और राजपूत बिरादरी के अध्यक्ष राव अफाक अली ने हज़रत साबिर पाक की चौखट पर पेश की। इस दौरान हरीश रावत के करीबी और ओएसडी सैयद कासिम समेत कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेता भी मौजूद रहे।
जब यह चादर दरगाह की चौखट पर पेश की गई, तो पूरा वातावरण आध्यात्मिक सुकून और इंसानियत की खुशबू से महक उठा। वहां मौजूद जायरीन और अनुयायी हाथ उठाकर दुआएं मांगने लगे। इन दुआओं में मुल्क की तरक्की, समाज में भाईचारा और अमन-चैन की कामनाओं के साथ-साथ उत्तराखंड में हाल ही में आई प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित लोगों की सलामती और राहत की भी विशेष प्रार्थना की गई। यह क्षण महज एक धार्मिक रस्म नहीं था, बल्कि पूरे समाज को यह संदेश देने वाला अवसर था कि राजनीति और मज़हब से बढ़कर इंसानियत सबसे बड़ा धर्म है।
पिरान कलियर शरीफ दरगाह को गंगा-जमनी तहज़ीब का प्रतीक माना जाता है। हर साल लाखों लोग, चाहे वे किसी भी धर्म या समुदाय से हों, यहां आकर अपनी आस्था प्रकट करते हैं। यहां की मिट्टी मोहब्बत, भाईचारे और इंसानियत की अनोखी खुशबू बिखेरती है। हज़रत साबिर पाक की दरगाह हमेशा से यह संदेश देती आई है कि इंसानियत का असली रास्ता मोहब्बत और भाईचारे से होकर गुजरता है।
राव अफाक अली ने चादर चढ़ाने के बाद कहा कि यह चादर केवल एक धार्मिक परंपरा का हिस्सा नहीं है, बल्कि हरीश रावत का गहरा संदेश है कि इंसानियत ही सबसे बड़ा मज़हब है। उन्होंने कहा कि आज के समय में जब समाज में नफरत और विभाजन की राजनीति हावी हो रही है, तब इस तरह की पहल हमें यह याद दिलाती है कि मोहब्बत और भाईचारा ही देश की असली ताक़त है। उन्होंने यह भी कहा कि उत्तराखंड की आपदा से जूझ रहे लोगों की सुरक्षा और सलामती हमारी दुआओं में शामिल है।
दरगाह के खादिमों ने भी हरीश रावत की इस पहल का स्वागत किया। उनका कहना था कि जब कोई नेता राजनीति से ऊपर उठकर इंसानियत और मोहब्बत का पैगाम देता है, तो समाज में अमन-चैन और अधिक मज़बूत होता है। दरगाह के सेवकों ने इस बात पर जोर दिया कि हज़रत साबिर पाक की चौखट पर सभी बराबर हैं, चाहे वे किसी भी धर्म, जाति या पंथ से क्यों न हों। यही दरगाह की सबसे बड़ी पहचान है और यही संदेश आज पूरे मुल्क को अपनाने की जरूरत है।
इस अवसर पर कांग्रेस नेताओं ने दरगाह में आए जायरीन से मुलाकात की और उनका हालचाल जाना। उन्होंने लोगों की समस्याओं और चिंताओं को भी सुना। इस दौरान पूरा माहौल भाईचारे, मोहब्बत और दुआओं से सराबोर नजर आया। जायरीन ने भी कांग्रेस के नेताओं का स्वागत किया और इस पहल को सराहनीय बताया।
हरीश रावत का यह कदम केवल राजनीतिक गतिविधि नहीं था, बल्कि यह एक गहरा सामाजिक और मानवीय संदेश था। उत्तराखंड की राजनीति में अक्सर नेताओं के बयानों और गतिविधियों को लेकर विवाद होते रहते हैं, लेकिन इस पहल ने यह साबित कर दिया कि राजनीति का मकसद सिर्फ सत्ता हासिल करना नहीं, बल्कि समाज की बेहतरी और इंसानियत की सेवा करना भी है।
पिरान कलियर शरीफ का इतिहास भी इंसानियत और मोहब्बत की मिसाल से भरा हुआ है। यहां हर धर्म और जाति के लोग अपनी मन्नतें लेकर आते हैं और उनकी दुआएं कबूल होती हैं। यही वजह है कि इस दरगाह को गंगा-जमनी तहज़ीब का सबसे बड़ा प्रतीक कहा जाता है।
इस मौके पर मौजूद लोग कहते हैं कि जब नेता इस तरह से इंसानियत का संदेश देते हैं तो आम जनता के बीच भी सकारात्मक सोच और भाईचारे की भावना मज़बूत होती है। खासकर ऐसे दौर में जब समाज में विभाजनकारी ताकतें सक्रिय हैं, तब इस तरह की पहल की जरूरत और भी ज्यादा है।
हरीश रावत की इस पहल का एक और पहलू भी सामने आया। उन्होंने उत्तराखंड में आई आपदा से प्रभावित लोगों के लिए दुआ की। हाल के दिनों में राज्य के कई हिस्सों में भारी बारिश, भूस्खलन और बाढ़ जैसी घटनाओं ने लोगों की जिंदगी को अस्त-व्यस्त कर दिया है। ऐसे में एक बड़े नेता का इस तरह से पीड़ितों की सलामती और राहत के लिए दुआ करना केवल सांकेतिक कदम नहीं है, बल्कि यह लोगों को यह एहसास दिलाने का भी तरीका है कि वे अकेले नहीं हैं।
उत्तराखंड जैसे पहाड़ी राज्य में राजनीति हमेशा से आस्था और संस्कृति से जुड़ी रही है। यहां के नेता सिर्फ विकास की बात नहीं करते, बल्कि यहां की धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहरों से भी गहराई से जुड़े रहते हैं। हरीश रावत का यह कदम उसी परंपरा का हिस्सा है। उन्होंने साबित किया कि राजनीति का असली मकसद केवल सत्ता तक पहुंचना नहीं है, बल्कि जनता के बीच विश्वास और आस्था को मजबूत करना भी है।
यह घटना मीडिया और सोशल प्लेटफॉर्म पर भी चर्चा का विषय बनी। कई लोगों ने इस पहल को उत्तराखंड की गंगा-जमनी तहज़ीब को और मजबूत करने वाला कदम बताया। लोगों का कहना है कि ऐसे संदेशों की आज के समय में बेहद जरूरत है, जब समाज में नफरत फैलाने की कोशिशें की जा रही हैं।
पिरान कलियर शरीफ हमेशा से ही देश की एकता और अखंडता का प्रतीक रहा है। यहां सभी धर्मों के लोग बड़ी संख्या में पहुंचते हैं और अपनी मन्नतें मांगते हैं। हरीश रावत की ओर से पेश की गई यह चादर उसी परंपरा को और मजबूत करने वाली रही।
इस अवसर ने यह साबित कर दिया कि इंसानियत सबसे बड़ा मज़हब है। चाहे कोई कितना भी बड़ा नेता क्यों न हो, जब वह मोहब्बत और भाईचारे का संदेश देता है, तो समाज पर उसका असर गहरा पड़ता है। यही वजह है कि हरीश रावत की इस पहल को केवल धार्मिक आस्था की अभिव्यक्ति नहीं, बल्कि एक बड़े सामाजिक और मानवीय संदेश के रूप में देखा जा रहा है।
इस पूरे आयोजन का सबसे अहम पहलू यह था कि इसमें केवल दुआएं ही नहीं की गईं, बल्कि यह संदेश भी दिया गया कि उत्तराखंड की सलामती और देश की तरक्की तभी संभव है जब समाज के हर तबके में मोहब्बत, भाईचारा और अमन-चैन कायम रहे।
अंत में यही कहा जा सकता है कि हरीश रावत की यह पहल राजनीति से परे जाकर इंसानियत की सबसे पवित्र मिसाल पेश करती है। पिरान कलियर शरीफ में पेश की गई चादर सिर्फ आस्था का प्रतीक नहीं थी, बल्कि यह पूरे मुल्क और खासकर उत्तराखंड की सलामती के लिए उठे वे हाथ थे जिनमें इंसानियत और मोहब्बत की सबसे सच्ची और पवित्र दुआ शामिल थी।
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