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हरिद्वार के शांतिकुंज आश्रम में सर्वपितृ मोक्ष अमावस्या के पावन अवसर पर विशाल सामूहिक श्राद्ध तर्पण संस्कार का आयोजन किया गया, जिसमें देश भर से 12 हजार से अधिक श्रद्धालुओं ने भाग लिया। इस आयोजन का उद्देश्य न केवल अपने पितरों और पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध कर्म सम्पन्न करना था, बल्कि समाज में आध्यात्मिक चेतना फैलाने और पर्यावरण संरक्षण के महत्व को भी रेखांकित करना था। आयोजन चार विभिन्न स्थलों पर आयोजित किया गया, जिसमें कुल 24 पारियों में श्रद्धालुओं ने विधिवत तर्पण और पिंडदान की प्रक्रिया पूरी की। इस अवसर पर देवभूमि उत्तराखंड सहित देश के विभिन्न हिस्सों में प्राकृतिक आपदाओं, दुर्घटनाओं और अन्य संकटों में दिवंगत आत्माओं की शांति के लिए भी विशेष प्रार्थनाएं की गईं।
श्रद्धालुओं को यह संदेश दिया गया कि पितृ श्राद्ध केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह अपने पूर्वजों के प्रति आभार और कृतज्ञता व्यक्त करने का माध्यम भी है। आयोजन के दौरान उपस्थित आचार्यों और पंडितों ने वैदिक विधि अनुसार श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान करवाया। उन्होंने यह भी बताया कि श्राद्ध कर्म को पर्यावरण संरक्षण से जोड़ना अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसके लिए प्रत्येक श्रद्धालु को कम से कम एक वृक्ष लगाने और उसकी देखभाल करने का संकल्प दिलाया गया। इस पहल ने सनातन संस्कृति और आधुनिक पर्यावरणीय जागरूकता को एक साथ जोड़ने का कार्य किया।

व्यवस्थापक योगेन्द्र गिरि ने कहा कि शांतिकुंज केवल धार्मिक आयोजन स्थल नहीं बल्कि समाज में आध्यात्मिक चेतना फैलाने और संस्कृति के संरक्षण की दिशा में प्रेरक केंद्र है। उन्होंने बताया कि इस प्रकार के आयोजनों से नई पीढ़ी को भारतीय संस्कृति और उसके गूढ़ रहस्यों की समझ विकसित होती है। उन्होंने यह भी कहा कि पितृ श्राद्ध और तर्पण की परंपरा सिर्फ कर्मकांड नहीं, बल्कि अपने पूर्वजों के प्रति श्रद्धा और जिम्मेदारी का प्रतीक है।
श्रद्धालुओं ने इस आयोजन की भव्यता और आध्यात्मिक ऊर्जा की प्रशंसा की। उन्होंने बताया कि सामूहिक श्राद्ध में भाग लेने से उन्हें अपने पूर्वजों के साथ एक गहरा आत्मिक संबंध महसूस हुआ और मन में शांति व संतोष की अनुभूति हुई। कई श्रद्धालुओं ने यह संकल्प लिया कि वे अपने घर लौटने के बाद भी पर्यावरण संरक्षण के लिए सक्रिय रहेंगे और अपने जीवन में प्रकृति के प्रति जागरूकता बनाए रखेंगे।
दिनभर शांतिकुंज में मंत्रोच्चार, हवन कुंडों की सुगंध और वैदिक स्तोत्रों की गूंज से वातावरण पवित्र बना रहा। चार अलग-अलग स्थलों पर आयोजित पारी कार्यक्रमों में प्रशिक्षित आचार्यों ने विधिवत प्रक्रिया का पालन कराया। प्रत्येक पारी में श्रद्धालुओं ने अपने पितरों की आत्मा की शांति हेतु आहुति दी और पिंडदान किया। कार्यक्रम के बाद उपस्थित लोगों को प्रसाद वितरित किया गया और पितृ कर्म के महत्व पर प्रवचन दिया गया।
इस आयोजन ने यह संदेश दिया कि धार्मिक अनुष्ठान और सामाजिक जिम्मेदारी को एक साथ निभाया जा सकता है। शांतिकुंज ने दिखाया कि सनातन संस्कृति केवल अतीत के स्मरण तक सीमित नहीं है, बल्कि वर्तमान और भविष्य की दिशा तय करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। हजारों श्रद्धालुओं ने सामूहिक तर्पण में भाग लेकर सामूहिक एकता, सांस्कृतिक चेतना और आध्यात्मिक ऊर्जा का अनुभव किया।
सर्वपितृ मोक्ष अमावस्या पर यह आयोजन भारतीय संस्कृति की उस परंपरा को पुनर्जीवित करता है जिसमें पूर्वजों के प्रति आभार, पर्यावरण संरक्षण और सामाजिक जिम्मेदारी का संदेश एक साथ दिया जाता है। हजारों श्रद्धालुओं ने न केवल श्राद्ध तर्पण सम्पन्न किया बल्कि यह संकल्प लिया कि वे प्रकृति और संस्कृति के संरक्षण में हमेशा सक्रिय रहेंगे। शांतिकुंज ने एक बार फिर साबित किया कि सनातन संस्कृति केवल पूजा-पाठ तक सीमित नहीं है, बल्कि यह जीवन को संतुलन, कृतज्ञता और सतत विकास की राह दिखाने वाली प्रेरणा है।
आयोजन ने यह स्पष्ट किया कि जब समाज के लोग एकजुट होकर कार्य करते हैं तो पर्यावरण संरक्षण और सांस्कृतिक संवर्धन दोनों संभव हैं। पौधरोपण और श्राद्ध कर्म को जोड़कर शांतिकुंज ने यह संदेश दिया कि अपने पूर्वजों को श्रद्धांजलि देने का सर्वोत्तम तरीका यही है कि हम उनकी स्मृति को जीवन और प्रकृति के संरक्षण के माध्यम से जीवित रखें। आयोजन ने स्थानीय समुदाय को भी प्रेरित किया कि वे नियमित रूप से वृक्षारोपण करें, अपने घरों, मोहल्लों और सार्वजनिक स्थलों में हरियाली बढ़ाएं और प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण में योगदान दें।
यह पहल न केवल हरिद्वार बल्कि पूरे प्रदेश और देश के लिए प्रेरणादायक साबित हो रही है। छोटे-छोटे कदम मिलकर बड़े बदलाव लाते हैं, और यह आयोजन इसे स्पष्ट रूप से दिखाता है। शांतिकुंज ने यह उदाहरण प्रस्तुत किया कि समाज में सांस्कृतिक और पर्यावरणीय चेतना फैलाने के लिए सामूहिक प्रयासों की आवश्यकता होती है। यदि प्रत्येक नागरिक अपने स्तर पर एक पौधा लगाए और उसकी देखभाल करे, तो आने वाली पीढ़ियों के लिए स्वच्छ, सुरक्षित और हरित वातावरण सुनिश्चित किया जा सकता
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