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कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु में एक ऐसा साइबर फ्रॉड सामने आया है जिसने पूरे देश में चिंता बढ़ा दी है। सीबीआई और आरबीआई का नाम लेकर एक व्यक्ति को डिजिटल गिरफ्तारी के जाल में फंसाया गया और उससे करीब 32 करोड़ रुपये ठग लिए गए। महीनों तक चली इस वारदात ने डिजिटल धोखाधड़ी के नए और खतरनाक रूप को उजागर किया है।
पिछले कुछ वर्षों में साइबर अपराधों में तेज़ी से बढ़ोतरी देखी गई है। इंटरनेट, वीडियो कॉलिंग ऐप्स और विदेशी नंबरों के माध्यम से होने वाले धोखाधड़ी के मामलों में खास तौर पर उछाल आया है। “डिजिटल अरेस्ट फ्रॉड” का यह पैटर्न चीन, यूके और अन्य देशों में देखा जा चुका है। अब इस मॉडस ऑपरेण्डी ने भारत में भी जोर पकड़ लिया है।
विशेषज्ञों के अनुसार, अपराधी खुद को सरकारी एजेंसियों का अधिकारी बताकर डर और दहशत का माहौल बनाते हैं और पीड़ित को मानसिक रूप से झकझोर देते हैं।
डिजिटल अरेस्ट?
17 नवंबर को दर्ज शिकायत के अनुसार, यह साइबर ठगी 15 सितंबर 2024 को सुबह 11 बजे शुरू हुई जब पीड़ित के फोन पर एक कॉल आया। कॉल करने वाले ने खुद को डीएचएल कंपनी का कर्मचारी बताया और दावा किया कि मुंबई के अंधेरी सेंटर में पीड़ित के नाम पर एक पैकेज पकड़ा गया है, जिसमें 3 क्रेडिट कार्ड, 4 पासपोर्ट और ड्रग्स (MDMA) पाए गए हैं। पीड़ित ने तुरंत इनकार किया, लेकिन बिना कुछ कहे कॉल को कथित “सीबीआई अधिकारी” के पास ट्रांसफर कर दिया गया। इसके बाद धमकियों का सिलसिला शुरू हुआ:
- “सबूत आपके खिलाफ हैं।”
- “परिवार को कुछ मत बताना, वरना उन्हें भी फँसा देंगे।”
- “अपराधी आपके घर पर नजर रख रहे हैं।”
- पीड़ित के बेटे की शादी तय होने के कारण वह और अधिक घबरा गया।
स्काइप पर ‘नजरबंदी’ और झूठा सरकारी दबाव
ठगों ने पीड़ित को स्काइप डाउनलोड करवाया।
- “मोहित हांडा” नाम के व्यक्ति ने कैमरा ऑन रखने को कहा।
- दो दिन तक पीड़ित पर 24 घंटे नजर रखी गई।
- इसके बाद “प्रदीप सिंह” नाम के कथित सीबीआई अधिकारी और “राहुल यादव” नाम का एक और व्यक्ति वीडियो कॉल पर आता रहा।
- स्काइप के माध्यम से लोकेशन, कॉल रिकॉर्ड और गतिविधियों की लगातार निगरानी की गई।
- 23 सितंबर को तो पीड़ित को होटल में जाकर भी वीडियो कॉल करना पड़ा।
ठगों ने फर्जी “आरबीआई संपत्ति सत्यापन” की बातें कीं और नकली दस्तावेज दिखाए।
पीड़ित को कहा गया:
- सभी संपत्तियों की सूची दो
- बैंक खातों से नाम हटाने के लिए 90% राशि जमा करो
- 24 सितंबर–22 अक्टूबर: संपत्तियों की सूची जमा
- 24 अक्टूबर–3 नवंबर: 2 करोड़ रुपये “जमानत”
- अक्टूबर–नवंबर: 2.4 करोड़ रुपये “टैक्स”
- कुल ठगी: 32 करोड़ रुपये
- 1 दिसंबर को कथित “क्लियरेंस लेटर” भेजा गया, लेकिन उसके बाद भी अपराधी पैसे मांगते रहे।
कर्नाटक पुलिस ने इस मामले में FIR दर्ज कर जांच शुरू कर दी है।
पुलिस ने शुरुआती बयान में कहा:
यह डिजिटल अरेस्ट फ्रॉड का नया और बेहद खतरनाक रूप है। अपराधी विदेशी नंबर, स्काइप और फर्जी एजेंसी दस्तावेजों का इस्तेमाल करते हैं।”
पुलिस ने साफ कहा कि CBI, RBI या कोई भी सरकारी एजेंसी फोन पर पैसे ट्रांसफर करने के लिए नहीं कहती।
इस घटना के सामने आने के बाद बेंगलुरु में दहशत और चिंता का माहौल है।
- आईटी सेक्टर के कर्मचारियों में डर
- वरिष्ठ नागरिकों में असुरक्षा की भावना
- साइबर हेल्पलाइन पर बढ़ी कॉल्स
- डिजिटल पेमेंट्स और ऑनलाइन सत्यापन को लेकर बढ़ते सवाल
बेंगलुरु साइबर पुलिस को ऐसे मामलों से जुड़े कई इनक्वायरी कॉल मिल रहे हैं।
साइबर क्राइम रिपोर्ट (2023–24) के अनुसार:
- भारत में 280% डिजिटल ठगी मामलों में वृद्धि हुई है
- कर्नाटक साइबर अपराध में देश में तीसरे स्थान पर आता है
- 2024 में बेंगलुरु में ही 500+ करोड़ रुपये की साइबर ठगी दर्ज हुई
- यह मामला देश के सबसे बड़े “डिजिटल अरेस्ट” फ्रॉड में से एक माना जा रहा है।
यह घटना दिखाती है कि साइबर अपराधी अब कितने संगठित और तकनीकी रूप से सक्षम हो चुके हैं। किसी भी अज्ञात कॉल, लिंक या संदिग्ध पहचान वाले अधिकारी के कहने पर वित्तीय लेन-देन बिल्कुल न करें। डर या दबाव में कोई कदम न उठाएँ।
किसी भी संदेह की स्थिति में तुरंत 1930 साइबर हेल्पलाइन और स्थानीय पुलिस से संपर्क करें।
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