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हैदराबाद, । आंध्र प्रदेश के अनंतपुर जिले में स्थित तलारी चेरुवु गांव हर साल माघ पूर्णिमा के दिन रहस्यमयी सन्नाटे में डूब जाता है। इस दिन गांव का हर घर, मंदिर और स्कूल ताले में बंद होता है। न किसी घर में चूल्हा जलता है, न कोई दीपक रोशन होता है। यह परंपरा कोई हालिया घटना नहीं, बल्कि सदियों से चली आ रही रीति का हिस्सा है, जिसे गांववाले अग्गीपाडु के नाम से जानते हैं।
कहानी वर्षों पुरानी है।
कहा जाता है कि एक समय गांव में एक ब्राह्मण ने किसी की फसल चुरा ली थी। गुस्साए ग्रामीणों ने उसे बेरहमी से पीट-पीटकर मार डाला। लेकिन इसके बाद गांव पर अभिशाप मंडराने लगा।

लोग बीमार पड़ने लगे, चारों ओर मातम छा गया। डर और अनहोनी से घबराए गांववाले एक ऋषि के पास पहुंचे और समाधान की गुहार लगाई। ऋषि ने उन्हें बताया कि इस पाप से मुक्ति का एकमात्र उपाय है—हर साल माघ पूर्णिमा के दिन गांव को पूरी तरह बंद रखना होगा, न कोई आग जलेगी, न कोई रोशनी होगी।
गांववालों ने ऋषि की बात मानी और तब से यह परंपरा हर साल निभाई जाती है। इस दिन पूरा गांव वीरान नजर आता है। कोई कहीं आता-जाता नहीं, बाजार-हाट सबकुछ ठप हो जाता है। आधुनिकता के इस दौर में भी गांववाले अग्गीपाडु परंपरा को पूरी श्रद्धा से निभाते हैं, क्योंकि उनका मानना है कि ऐसा न करने से गांव पर फिर कोई संकट आ सकता है।
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