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लक्सर और आसपास के क्षेत्रों में निजी अस्पतालों की लापरवाही ने स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता पर सवाल खड़े कर दिए हैं। कई अस्पताल बिना पंजीकरण चल रहे हैं और जहां पंजीकरण है, वहां भी डॉक्टर्स अनुपस्थित पाए गए। ट्रेनी नर्सों और अनुभवहीन स्टाफ के भरोसे मरीजों का इलाज किए जाने से गंभीर घटनाएं बढ़ रही हैं।
हरिद्वार जिले के मैदानी क्षेत्रों में सरकारी अस्पतालों पर भारी दबाव रहता है, जिसके चलते मरीज निजी अस्पतालों का रुख करते हैं। लेकिन वर्षों से शिकायतें मिलती रही हैं कि निजी अस्पताल उच्च शुल्क लेकर भी गुणवत्ता और सुरक्षा के मानकों का पालन नहीं करते। स्वास्थ्य विभाग द्वारा समय-समय पर जारी दिशा-निर्देशों के बावजूद, पंजीकरण प्रक्रिया ढीली और निगरानी लगभग न के बराबर है। इसी कारण छोटे कस्बों में क्लिनिक, पैथोलॉजी, एक्स-रे सेंटर और नर्सिंग होम बिना मानकों के फल-फूल रहे हैं।
कागजों में डॉक्टर, मौके पर गायब”
लक्सर, हरिद्वार, रुड़की, भगवानपुर, कलियर, सुल्तानपुर, लंढौरा, चुड़ियाला, मंगलौर और ज्वालापुर क्षेत्रों में किए गए पड़ताल से सामने आया कि:
- कई अस्पताल बिना पंजीकरण के चल रहे हैं
- पंजीकृत अस्पतालों में रजिस्टर में दर्ज डॉक्टर कभी अस्पताल में दिखते ही नहीं
- ट्रेनी नर्सें और बिना योग्यता वाले लोग गंभीर मरीजों का इलाज कर रहे हैं
- प्रसूति सेवाओं में लापरवाही से जच्चा-बच्चा की मौत के मामले बढ़े हैं
- स्थानीय लोगों का कहना है,
मरीजों का दोहन हो रहा है। बिना योग्यता और नियमों के ये अस्पताल खुलेआम जान से खिलवाड़ कर रहे हैं।”
सूत्रों के अनुसार, जिले में ऐसे 50 से अधिक निजी केंद्र हैं जहां डॉक्टरों की उपस्थिति संदेह के दायरे में है। स्वास्थ्य विभाग इन आरोपों पर जांच की बात कहता रहा है। अधिकारियों के अनुसार,
आवश्यक कार्रवाई की जा रही है और पंजीकरण नियमों का उल्लंघन करने वाले केंद्रों के खिलाफ नोटिस जारी किए गए हैं।”
हालांकि, स्थानीय जनता का कहना है कि कार्रवाई केवल नोटिस तक सीमित रहती है और अवैध अस्पताल कुछ दिनों बाद फिर संचालित होने लगते हैं।
मरीजों की जिंदगी पर खतरा
इस स्थिति का सीधा असर लोगों की सेहत और जीवन पर पड़ रहा है।
| क्षेत्र | असर |
|---|---|
| स्वास्थ्य | गलत इलाज व दवाइयों से गंभीर जोखिम |
| आर्थिक | इलाज पर भारी खर्च, लेकिन गुणवत्ता नहीं |
| सामाजिक | स्वास्थ्य सेवाओं पर से भरोसा उठ रहा |
| शिक्षा | मेडिकल ट्रेनिंग के नाम पर फर्जी प्रैक्टिस को बढ़ावा |
ग्रामीण क्षेत्रों के मरीजों के पास अक्सर विकल्प कम होते हैं, जिसके चलते वे मजबूरन इन्हीं केंद्रों में इलाज कराते हैं।
- भारत में हर साल लगभग 52 लाख चिकित्सकीय लापरवाही के मामले दर्ज होते हैं।
- इनमें से लगभग 98,000 मौतें सीधे-सीधे मेडिकल नेग्लिजेंस का परिणाम होती हैं।
- हरिद्वार/उत्तराखंड के पिछले 5 वर्षों के आंकड़े]
- सुप्रीम कोर्ट ने जेकब मैथ्यू बनाम पंजाब राज्य केस में स्पष्ट कहा था कि डॉक्टरों को फर्जी मुकदमों से बचाया जाए, लेकिन वास्तविक लापरवाही पर सख्त कार्रवाई होनी चाहिए।
विशेषज्ञों के अनुसार समस्या का मूल कारण—
- निगरानी की कमी
- भ्रष्टाचार व मिलीभगत
- पंजीकरण प्रणाली में पारदर्शिता का अभाव
संभावित समाधान:
- अस्पतालों का डिजिटल पंजीकरण और ऑनलाइन सत्यापन
- मासिक निरीक्षण और GPS-आधारित डॉक्टर उपस्थिति रिकॉर्ड
- मरीज अधिकारों और शिकायत प्रक्रिया पर अधिक जागरूकता
- दोषी संस्थानों पर लाइसेंस रद्द और कानूनी कार्रवाई
लक्सर व हरिद्वार क्षेत्र में स्वास्थ्य सेवाओं की वर्तमान तस्वीर चिंताजनक है। बिना पंजीकरण चलते अस्पताल और डॉक्टरों की गैर-मौजूदगी मरीजों की जान के साथ खिलवाड़ है। सलाह: इलाज कराने से पहले अस्पताल/डॉक्टर का पंजीकरण अवश्य जांचें। किसी भी लापरवाही की स्थिति में स्थानीय CMO कार्यालय या मेडिकल काउंसिल में शिकायत दर्ज कराएँ। स्वास्थ्य सेवाएं लाभ कमाने का साधन नहीं, लोगों के जीवन की जिम्मेदारी हैं—और इस पर सख्त निगरानी समय की मांग है।
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