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पुण्यभूमि हरिद्वार में सोमवार को पंचायती अखाड़ा श्री निरंजनी में भगवान श्री गुरु कार्तिकेय जी का जन्मोत्सव और गुरु छठ महापर्व अत्यंत श्रद्धा, भक्ति और उल्लास के साथ मनाया गया। अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद और श्री मनसा देवी मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष श्रीमहंत रविंद्र पुरी महाराज के सानिध्य में हुए इस आयोजन में संत, महात्मा और हजारों श्रद्धालुओं ने भाग लिया।
सनातन परंपरा में गुरु छठ का महत्व
गुरु छठ पर्व का विशेष स्थान संत परंपरा में है। यह पर्व भगवान कार्तिकेय, जो भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र हैं, की आराधना का दिन है। उन्हें ज्ञान, संयम और शक्ति का प्रतीक माना जाता है। सनातन संस्कृति में यह दिन गुरु-शिष्य परंपरा, आत्मानुशासन और धर्मनिष्ठा का प्रतीक भी माना जाता है।
पंचायती अखाड़ा निरंजनी में हुआ दिव्य आयोजन
27 अक्टूबर 2025, सोमवार को हरिद्वार के पंचायती अखाड़ा श्री निरंजनी में गुरु कार्तिकेय जन्मोत्सव का भव्य आयोजन किया गया।
कार्यक्रम की शुरुआत भगवान श्री गुरु कार्तिकेय जी की दिव्य मूर्ति के पंचामृत स्नान और विधिवत पूजा-अर्चना से हुई। भजन-कीर्तन और मंत्रोच्चार से पूरा परिसर आध्यात्मिक ऊर्जा से गूंज उठा।
इसके बाद मुख्य सभा का आयोजन हुआ, जिसकी अध्यक्षता जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी राजराजेश्वराश्रम महाराज ने की, जबकि संचालन श्रीमहंत रविंद्र पुरी महाराज ने किया।
पंचायती अखाड़ा निरंजनी में हुआ दिव्य आयोजन
27 अक्टूबर 2025, सोमवार को हरिद्वार के पंचायती अखाड़ा श्री निरंजनी में गुरु कार्तिकेय जन्मोत्सव का भव्य आयोजन किया गया।
कार्यक्रम की शुरुआत भगवान श्री गुरु कार्तिकेय जी की दिव्य मूर्ति के पंचामृत स्नान और विधिवत पूजा-अर्चना से हुई। भजन-कीर्तन और मंत्रोच्चार से पूरा परिसर आध्यात्मिक ऊर्जा से गूंज उठा।
इसके बाद मुख्य सभा का आयोजन हुआ, जिसकी अध्यक्षता जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी राजराजेश्वराश्रम महाराज ने की, जबकि संचालन श्रीमहंत रविंद्र पुरी महाराज ने किया।
संत समाज के संदेश और विचार
जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी राजराजेश्वराश्रम महाराज ने कहा —
“गुरु छठ पर्व सनातन संस्कृति की गहराई और गुरु-शिष्य परंपरा की महत्ता का प्रतीक है। आज के युवाओं को कार्तिकेय जी के जीवन से प्रेरणा लेकर धर्म रक्षा और राष्ट्र सेवा का संकल्प लेना चाहिए।”
अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष श्रीमहंत रविंद्र पुरी महाराज ने कहा —
“गुरु छठ केवल एक उत्सव नहीं, बल्कि संत परंपरा का जीवंत स्वरूप है। अखाड़े हमारी संस्कृति के रक्षक हैं और समाज को दिशा देने वाले केंद्र हैं।”
स्वामी कैलाशानंद गिरि महाराज ने बताया कि गुरु कार्तिकेय जी का जीवन आत्मानुशासन और तपस्या का संदेश देता है, जो आधुनिक समाज में भी उतना ही प्रासंगिक है।
हरिद्वार में गूंजे भजन और आस्था के स्वर
हरिद्वार की गलियों और घाटों में भक्तिभाव का वातावरण व्याप्त रहा। स्थानीय दुकानदारों और व्यापारियों ने आयोजन स्थल के आस-पास सजावट की। होटल, धर्मशालाओं और घाटों पर आने वाले श्रद्धालुओं के लिए विशेष व्यवस्था की गई।
इस आयोजन ने न केवल हरिद्वार को फिर से एक आध्यात्मिक केंद्र के रूप में स्थापित किया, बल्कि स्थानीय अर्थव्यवस्था में भी नई ऊर्जा भरी। धार्मिक पर्यटन से जुड़े लोगों ने कहा कि ऐसे आयोजन शहर के धार्मिक पर्यटन को और बढ़ावा देते हैं।
धार्मिक आयोजनों की परंपरा और विस्तार
हरिद्वार में अखाड़ा परिषद द्वारा समय-समय पर ऐसे आयोजन होते रहते हैं, जो संत परंपरा की निरंतरता को दर्शाते हैं। वर्ष 2024 में भी गुरु छठ महापर्व में लगभग 20 हजार श्रद्धालु शामिल हुए थे, जबकि इस बार यह संख्या से अधिक रही।
अखाड़ा परिषद के अनुसार, इस वर्ष के आयोजन में अधिक संत-महात्माओं की भागीदारी हुई, जिससे गुरु परंपरा की व्यापकता का प्रमाण मिला।
एकता, श्रद्धा और संस्कृति का प्रतीक आयोजन
गुरु कार्तिकेय जन्मोत्सव और गुरु छठ महापर्व का यह आयोजन न केवल श्रद्धा का उत्सव था, बल्कि यह समाज को एकता, संयम और आत्मानुशासन का संदेश देने वाला भी रहा। अंत में आयोजित महाप्रसाद एवं भंडारे में हजारों श्रद्धालुओं ने भाग लिया।
साथ ही, पवित्र गंगा जल से भरा कलश ‘पशुपतिनाथ नेपाल’ के लिए रवाना किया गया, जो भारत-नेपाल की सांस्कृतिक एकता का प्रतीक बना।
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