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बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले जनता दल (यूनाइटेड) ने बड़ा अनुशासनात्मक कदम उठाया है। पार्टी ने संगठन विरोधी गतिविधियों में शामिल पाए जाने पर अपने 11 वरिष्ठ नेताओं को बाहर का रास्ता दिखा दिया है। इनमें चार पूर्व विधायक और एक पूर्व मंत्री भी शामिल हैं।
चुनावी तैयारी और पार्टी अनुशासन पर नीतीश कुमार का फोकस
बिहार की राजनीति में जैसे-जैसे विधानसभा चुनाव नजदीक आ रहे हैं, प्रमुख दलों में संगठनात्मक फेरबदल और सख्ती देखी जा रही है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली जदयू (JDU) लंबे समय से अनुशासन और पार्टी लाइन पर चलने की बात करती रही है। बीते कुछ महीनों से कई नेता खुले मंचों पर पार्टी नीति से अलग बयानबाजी कर रहे थे, जिससे संगठन की एकजुटता पर सवाल उठने लगे थे। इसी पृष्ठभूमि में पार्टी ने कड़े कदम उठाते हुए 11 नेताओं को निष्कासित कर दिया।
किन नेताओं पर गिरी गाज और क्यों
जदयू के प्रदेश अध्यक्ष उमेश सिंह कुशवाहा ने शनिवार को प्रेस विज्ञप्ति जारी कर बताया कि जिन नेताओं को निष्कासित किया गया है, उनका आचरण पार्टी की नीतियों और अनुशासन के विरुद्ध पाया गया है।
उन्होंने कहा कि चुनावी समय में पार्टी लाइन से अलग चलना, बयानबाजी करना और विरोधी दलों के साथ संबंध बनाना अस्वीकार्य है।
निष्कासित नेताओं की सूची में ये प्रमुख नाम शामिल हैं —
- पूर्व मंत्री शैलेश कुमार
- पूर्व विधायक श्याम बहादुर सिंह
- पूर्व विधान पार्षद रणविजय सिंह
- पूर्व विधायक सुदर्शन कुमार
- पूर्व विधान पार्षद संजय प्रसाद
- अमर कुमार सिंह
- आस्मां परवीन (महुआ से पूर्व प्रत्याशी)
- लव कुमार, आशा सुमन, दिव्यांशु भारद्वाज, विवेक शुक्ला
- पार्टी ने इन सभी को तत्काल प्रभाव से निष्कासित करते हुए कहा है कि कोई भी व्यक्ति जो पार्टी लाइन के खिलाफ काम करेगा, उसे बख्शा नहीं जाएगा।
जदयू प्रदेश अध्यक्ष उमेश सिंह कुशवाहा ने कहा —
“पार्टी अनुशासन और विचारधारा से समझौता नहीं किया जा सकता। चुनाव के वक्त संगठन की मजबूती सर्वोच्च प्राथमिकता है। जो लोग पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल हैं, उनके खिलाफ सख्त कदम उठाए जाएंगे।”
उन्होंने आगे जोड़ा कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के निर्देश पर यह निर्णय लिया गया है ताकि संगठन में स्पष्ट संदेश जाए कि जदयू में अनुशासन सर्वोपरि है।
चुनावी समीकरणों पर पड़ेगा असर
राजनीतिक जानकारों के मुताबिक, इन 11 नेताओं में कई ऐसे नाम हैं जिनका अपने-अपने क्षेत्रों में मजबूत जनाधार है।
महुआ, नवादा, सासाराम, और गया जिलों में कुछ नेताओं के निर्दलीय चुनाव लड़ने की चर्चा भी तेज है।
स्थानीय स्तर पर इसका असर पार्टी के वोट बैंक पर पड़ सकता है, लेकिन नेतृत्व का मानना है कि यह “कम नुकसान, ज्यादा संदेश” वाली रणनीति है। वहीं, विरोधी दलों ने इस कार्रवाई को “आंतरिक कलह” बताया है। एक वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक के मुताबिक,
यह पहली बार नहीं है जब जदयू ने चुनाव से पहले अनुशासनात्मक कार्रवाई की हो।
2015 और 2020 के चुनावों के दौरान भी पार्टी ने टिकट न मिलने पर बगावत करने वाले कई नेताओं को बाहर का रास्ता दिखाया था। राजनीतिक इतिहास बताता है कि नीतीश कुमार ने हमेशा संगठन की एकता को प्राथमिकता दी है, भले ही इसके लिए कुछ पुराने चेहरों की कुर्बानी क्यों न देनी पड़े।
जदयू के इस कदम ने बिहार की राजनीति में नई हलचल पैदा कर दी है।
यह साफ संकेत है कि नीतीश कुमार किसी भी कीमत पर पार्टी में असंतोष या अनुशासनहीनता बर्दाश्त नहीं करेंगे।
विशेषज्ञों का मानना है कि यह “क्लीन-अप ड्राइव” जदयू की चुनावी रणनीति का अहम हिस्सा है, जिसका मकसद पार्टी को अंदर से मजबूत और अनुशासित बनाना है।
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