पिथौरागढ़ में शिक्षकों का आंदोलन पांचवे दिन भी जारीपिथौरागढ़ में शिक्षकों का आंदोलन पांचवे दिन भी जारी

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पिथौरागढ़ जनपद में शिक्षकों का आंदोलन लगातार पांचवे दिन भी जारी रहा। राजकीय शिक्षक संघ के नेतृत्व में चल रहे इस आंदोलन का मुख्य कारण पदोन्नति और स्थानांतरण की प्रक्रिया को लागू न किया जाना है। शिक्षकों का कहना है कि लंबे समय से विभाग उनकी मांगों को नजरअंदाज कर रहा है, जिसके कारण अब उन्हें आंदोलन का रास्ता अपनाना पड़ा है।

शिक्षक संघ के जिलाध्यक्ष प्रवीण रावल ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि जब तक पदोन्नति और स्थानांतरण प्रक्रिया लागू नहीं की जाती, तब तक आंदोलन जारी रहेगा। उन्होंने बताया कि कई प्रभारी प्रधानाचार्यों ने अपने पद का प्रभार छोड़ दिया है। उन्होंने साफ कहा है कि वे तभी काम संभालेंगे जब उन्हें स्थायी पदोन्नति के माध्यम से प्रभार प्रदान किया जाएगा। इससे साफ है कि आंदोलन अब और ज्यादा तेज हो सकता है और शिक्षा व्यवस्था पर इसका प्रतिकूल असर भी साफ नजर आने लगा है।

पिथौरागढ़ के साथ-साथ कुमाऊं विश्वविद्यालय परिसर (केएनयू) में भी शिक्षकों ने विरोध प्रदर्शन किया। उन्होंने सरकार से स्पष्ट मांग की कि पदोन्नति, स्थानांतरण और अन्य लंबित मांगों पर जल्द से जल्द कार्रवाई की जाए। उनका कहना है कि शिक्षा जैसी महत्वपूर्ण सेवा क्षेत्र में लगातार अनदेखी करना न केवल शिक्षकों का अपमान है बल्कि छात्र-छात्राओं के भविष्य से भी खिलवाड़ है।

आंदोलन के चलते स्कूलों में पढ़ाई बुरी तरह प्रभावित हो रही है। कई जगहों पर कक्षाएं ठप हैं और छात्र-छात्राओं को नुकसान उठाना पड़ रहा है। ग्रामीण इलाकों के स्कूलों में तो हालात और गंभीर हो गए हैं क्योंकि वहां सीमित संख्या में ही शिक्षक तैनात हैं। जब वे भी आंदोलन में शामिल हो गए हैं तो बच्चों की पढ़ाई लगभग बंद हो गई है।

शिक्षकों का कहना है कि विभाग ने कई वर्षों से पदोन्नति की प्रक्रिया को रोक रखा है। योग्य और वरिष्ठ शिक्षकों को पदोन्नति का लाभ नहीं मिल पा रहा है। इससे न केवल शिक्षकों का मनोबल टूट रहा है बल्कि स्कूलों की प्रशासनिक व्यवस्था भी गड़बड़ा रही है। कई स्कूलों में वर्षों से प्रभारी प्रधानाचार्य ही काम देख रहे हैं, जबकि स्थायी प्राचार्य की नियुक्ति नहीं हो पा रही है।

प्रवीण रावल ने कहा कि शिक्षक सरकार से किसी अतिरिक्त सुविधा की मांग नहीं कर रहे हैं बल्कि केवल अपने हक की मांग कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि शिक्षा विभाग के अधिकारी और सरकार यदि उनकी मांगों को गंभीरता से सुनते तो आंदोलन की नौबत ही नहीं आती। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि उनकी मांगों पर जल्द विचार नहीं किया गया तो आंदोलन और उग्र रूप ले सकता है।

आंदोलन की वजह से अभिभावकों की चिंता भी बढ़ गई है। अभिभावकों का कहना है कि पहले ही कोविड-19 और ऑनलाइन पढ़ाई के कारण बच्चों की शिक्षा पर गहरा असर पड़ा है और अब शिक्षक आंदोलन से पढ़ाई ठप हो जाने से स्थिति और बिगड़ जाएगी। उन्होंने सरकार से अपील की है कि जल्द से जल्द शिक्षकों की मांगों को पूरा कर उनकी नाराजगी दूर की जाए।

पिथौरागढ़ समेत पूरे उत्तराखंड में यह आंदोलन धीरे-धीरे विस्तार लेता नजर आ रहा है। कई जिलों में शिक्षकों ने राजकीय शिक्षक संघ के समर्थन में आवाज उठानी शुरू कर दी है। हल्द्वानी, अल्मोड़ा और टिहरी जैसे जिलों में भी शिक्षकों ने सामूहिक बैठकें कर इस मुद्दे पर अपनी नाराजगी जताई है। उनका कहना है कि यदि पिथौरागढ़ के शिक्षकों की मांगों पर सरकार कार्रवाई नहीं करती तो पूरे राज्य में शिक्षक एकजुट होकर बड़ा आंदोलन छेड़ देंगे।

शिक्षकों का यह भी कहना है कि विभागीय पदोन्नति और स्थानांतरण प्रक्रिया रुकी रहने से युवा शिक्षकों को भी नुकसान हो रहा है। वरिष्ठ शिक्षकों को पदोन्नति नहीं मिल रही है और इसके कारण नए शिक्षकों की नियुक्तियों का रास्ता भी बंद हो रहा है। यदि पदोन्नति की प्रक्रिया शुरू की जाती है तो नए पद खाली होंगे और बेरोजगार युवाओं को भी रोजगार के अवसर मिलेंगे।

शिक्षक नेताओं ने चेतावनी दी है कि यदि उनकी मांगों पर सरकार ने ठोस कार्रवाई नहीं की तो आंदोलन को राज्य स्तर तक ले जाया जाएगा और स्कूलों में अनिश्चितकालीन हड़ताल होगी। इससे शिक्षा व्यवस्था पूरी तरह से चरमरा जाएगी और सरकार को इसका गंभीर परिणाम भुगतना पड़ेगा।

कई शिक्षकों ने यह भी आरोप लगाया कि विभागीय अधिकारियों ने वर्षों से फाइलों को दबाकर रखा है और जब भी पदोन्नति या स्थानांतरण की बात होती है तो प्रक्रिया को टाल दिया जाता है। यह रवैया शिक्षक समाज में गहरी नाराजगी का कारण बना हुआ है।

आंदोलन के पांचवे दिन भी शिक्षकों की नाराजगी कम होती नहीं दिख रही है। धरना-प्रदर्शन में लगातार शिक्षकों की संख्या बढ़ रही है और उनका आक्रोश सरकार के खिलाफ साफ झलक रहा है। उनका कहना है कि जब तक मांगें पूरी नहीं होतीं, तब तक आंदोलन जारी रहेगा।

सरकार की ओर से अब तक इस मामले पर कोई ठोस बयान नहीं आया है। हालांकि, सूत्रों के अनुसार सरकार इस मामले को लेकर विचार कर रही है और जल्द ही कोई निर्णय लिया जा सकता है। लेकिन शिक्षकों का कहना है कि अब वे केवल आश्वासन से संतुष्ट नहीं होंगे। जब तक लिखित आदेश जारी नहीं होता और प्रक्रिया शुरू नहीं होती, तब तक आंदोलन खत्म नहीं किया जाएगा।

पिथौरागढ़ में यह आंदोलन एक बड़ी चेतावनी के रूप में देखा जा रहा है। यह न केवल शिक्षा व्यवस्था पर सीधा असर डाल रहा है बल्कि सरकार की नीतियों और प्राथमिकताओं पर भी सवाल खड़े कर रहा है। जनता की उम्मीदें हैं कि सरकार जल्द ही समाधान निकालकर बच्चों की पढ़ाई बचाएगी और शिक्षकों की नाराजगी को दूर करेगी।

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By ATHAR

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